Latest News: Over 1 Million resources hired through GeM in FY 2024-25 * वित्त वर्ष 2024-25 में गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस के माध्यम से 10 लाख से अधिक की गई नियुक्तियां * Union government to establish 440 Eklavya Model Residential School, one in every block having more than 50 per cent ST population and at least 20,000 tribal persons

कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को ऐसे दें बढ़ावा...

एक अनुमान के तहत वैश्विक आबादी का 60 फीसदी हिस्सा किसी न किसी रूप में रोजगार से जुड़ा है। इसलिए, कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को महत्व देना अनिवार्य हो गया है।

मानसिक स्वास्थ्य और काम का आपस में गहरा सम्बंध है। कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, उनके उद्देश्य सुनिश्चित करने के साथ ही स्थिरता और नौकरी की संतुष्टि प्रदान करने के लिए एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण कार्य वातावरण महत्वपूर्ण है।

Read in English: Enhancing mental well-being at work…

दूसरी ओर, प्रतिकूल कार्य परिस्थितियां मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं और इससे उत्पादकता और मनोबल में कमी आ सकती है। एक समावेशी और सम्मानजनक कार्यस्थल कर्मचारियों को अधिक प्रेरित करता है। इसके विपरीत, तनाव, भेदभाव, दुर्व्यवहार और सूक्ष्म प्रबंधन के कारण प्रतिकूल वातावरण बन सकता है, जो प्रेरणा और नौकरी से संतुष्टि को कम करता है।

कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए खराब कामकाजी परिस्थितियों, भेदभाव और सीमित स्वायत्तता जैसे कई तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ता है। कम वेतन वाली या असुरक्षित नौकरियों में अक्सर अपर्याप्त सुरक्षा होती है। इससे इस प्रकार की नौकरियां करने वाले कर्मचारी के लिए मनो-सामाजिक जोखिमों की समस्या बढ़ जाती है, जिससे उनका समग्र कल्याण प्रभावित हो सकता है।

पर्याप्त सहयोग के बिना, मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे व्यक्तियों में आत्मविश्वास की कमी, काम में मन न लगना और उनके बार-बार अनुपस्थित होने की स्थिति हो सकती है। इसका प्रभाव कार्यस्थल से परे भी देखा जा सकता है, जिससे रोजगार पाने या उसे किए जाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। ये चुनौतियां परिवार के सदस्यों और देखभाल करने वालों को भी प्रभावित करती हैं और इससे उनके जीवन में तनाव और बढ़ जाता है।

कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं केवल व्यक्तिगत कर्मचारियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका व्यापक सामाजिक प्रभाव है। खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण कार्य उत्पादकता में कमी व कर्मचारियों की अनुपस्थिति में वृद्धि हो सकती है। वैश्विक स्तर पर, अवसाद और चिंता प्रत्येक वर्ष लगभग 12 बिलियन कार्यदिवसों के नुकसान का कारण बनते हैं, इससे अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के आर्थिक और सामाजिक परिणामों का पता चलता है।

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या एक महत्वपूर्ण बाधा है जो व्यक्तियों को मदद मांगने और रोजगार बनाए रखने से रोकता है। मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे लोगों के साथ कार्यस्थल पर भेदभाव उनकी सफलता की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य की खराब स्थिति वाले कर्मचारियों के साथ जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण और जुड़ाव अधिक समावेशी, सहायक कार्य वातावरण में योगदान दे सकते हैं।

खराब मानसिक स्वास्थ्य स्थिति वाले कर्मचारी कार्यस्थल पर सफल हो सकें, यह सुनिश्चित करने में नियोक्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नियमित सहायक बैठकें, निर्धारित अवकाश और कार्यों को धीरे-धीरे फिर से शुरू करना और कर्मचारियों की स्थितियों का प्रबंधन करने जैसे उचित समायोजन उन्हें उत्पादक बने रहने में मदद करता है। इलाज की सुविधाओं की पेशकश भी एक महत्वपूर्ण अंतर ला सकती है।

नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य तनावों की पहचान करने और उन्हें दूर करने के लिए प्रबंधकों के प्रशिक्षण में निवेश करना चाहिए। प्रशिक्षित प्रबंधक सकारात्मक और सहायक कार्य वातावरण को बढ़ावा देने के लिए बेहतर ढंग से तैयार होते हैं, जो तनाव कम करने और कर्मचारियों के बीच मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

सरकारों, नियोक्ताओं और प्रतिनिधि संगठनों को सार्थक बदलाव लाने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों को रोकने और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाने में सहयोग करना चाहिए। इन प्रयासों का उद्देश्य ऐसे कार्यस्थल का निर्माण होना चाहिए जहां मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले और कर्मचारियों के लिए सुरक्षात्मक उपाय किए जाएं।

कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकारें और नियोक्ता तो जिम्मेदार हैं ही, लोग भी अपने स्वयं के कल्याण के लिए कदम उठा सकते हैं। तनाव प्रबंधन तकनीक सीखना और मानसिक स्वास्थ्य में होने वाले बदलावों के प्रति सचेत रहना आवश्यक है। जरूरत पड़ने पर किसी विश्वसनीय व्यक्ति या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करके आवश्यक सहायता प्राप्त की जा सकती है।

भारत, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक है और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धन की कमी और मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक के मामलों वाली पृष्ठभूमि के साथ, भारत ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे और नीतियों में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

22 जुलाई को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में पहली बार, मानसिक स्वास्थ्य, इसके महत्व और नीतिगत सिफारिशों पर इसके प्रभाव के बारे में बात की गई। व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए मुख्य रूप से प्रभावशाली संचालक के रूप में मानसिक स्वास्थ्य को स्वीकार करते हुए, सर्वेक्षण में कहा गया है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत में 10.6 प्रतिशत वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जबकि मानसिक विकारों के लिए उपचार का अंतराल विभिन्न विकारों के लिए 70 प्रतिशत और 92 प्रतिशत के बीच है। इसके अलावा, मानसिक बीमारी की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों (6.9 प्रतिशत) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3 प्रतिशत) की तुलना में शहरी मेट्रो क्षेत्रों में (13.5 प्रतिशत) थी। एनसीईआरटी स्कूलों के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण का हवाला देते हुए सर्वेक्षण ने कोविड-19 महामारी के कारण किशोरों में खराब मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते मामलों पर प्रकाश डाला है। सर्वेक्षण में 11 प्रतिशत छात्रों ने चिंता महसूस करने, 14 प्रतिशत ने अत्यधिक भावुक होने और 43 प्रतिशत ने मनोदशा में उतार-चढ़ाव के अनुभव की बात कही है।

मानसिक स्वास्थ्य और काम आपस में करीब से जुड़े होने के कारण, सरकारों, नियोक्ताओं और हितधारकों के लिए सुरक्षित, समावेशी और सहायक वातावरण बनाने के लिए कार्रवाई करना आवश्यक है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सके। डब्ल्यूएचओ और डब्ल्यूएफएमएच द्वारा संचालित वैश्विक पहल इस दिशा में अच्छा काम कर रही है, लेकिन जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है।

मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों को बढ़ाकर और सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करके, भारत, उपचार मामलों के अंतर को कम करने और देश के मानसिक स्वास्थ्य बोझ को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। जैसे-जैसे ये प्रयास जारी हैं, ध्यान समावेशी प्रणाली बनाने पर बना रहना चाहिए जो व्यक्तियों को काम और समाज दोनों में तरक्की करने में सक्षम बनाए। आने वाले वर्षों में, सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों के बीच निरंतर सहयोग यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुलभ और प्रभावी हो। यह एक ऐसा भविष्य बनाने में मदद करेगा जहां मानसिक स्वास्थ्य को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जाएगी, और प्रत्येक व्यक्ति अच्छे से काम करते हुए अपना जीवन जी सकेगा।


Related Items

  1. ग्रामीण स्वास्थ्य की रीढ़ ‘आशा’ बन रही निराशा…!

  1. खरपतवार जलकुंभी से इन युवाओं ने बनाया नियमित आय का रोजगार

  1. नई भू-स्थानिक डाटा नीति से बढ़ेंगे रोजगार के अवसर