भारत के कार्यबल में महिलाओं के अधिक संख्या में शामिल होने से अब देश एक परिवर्तनकारी आर्थिक बदलाव की दहलीज पर खड़ा है। तकनीकी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा या विनिर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका बढ़ रही है। यह बदलाव आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर कार्यस्थल की गतिशीलता में लगातार वृद्धि कर रहा है।
भारत में 2017-18 और 2023-24 के बीच महिला श्रम बल भागीदारी दर और कार्य भागीदारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। इस अवधि में महिला बेरोज़गारी दर में भी गिरावट आई है। यह बदलाव न केवल आर्थिक प्रगति को दर्शाता है, बल्कि एक न्यायसंगत, गतिशील श्रम बाज़ार बनाने की दिशा में भारत के अभियान को भी दर्शाता है।
Read in English: A rising tide of women participation in Indian workforce
महिला कार्य सहभागिता दर का लगभग दोगुना होना कार्यबल के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के शामिल होने की जोरदार प्रवृत्ति को दर्शाता है। यह बदलाव महिला श्रम बल सहभागिता दर में इसी तरह की प्रगति को दिखाता है, जो रोजगार की तलाश करने और उसे हासिल करने वाली सक्रिय महिलाओं की बढ़ती संख्या को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त, महिला बेरोजगारी दर में उल्लेखनीय गिरावट रोजगार की उपलब्धता में वृद्धि का संकेत देती है, जिसमें महिलाएं इन अवसरों का लाभ उठाती हैं। यह महिलाओं की रोजगार पहुंच में वृद्धि और कार्य के प्रति संतुष्टि दोनों को दर्शाता है।
महिला कार्यबल भागीदारी में परिवर्तन कई महत्वपूर्ण कारकों से प्रेरित है। इनमें शैक्षिक प्रगति, भारत की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव और श्रम डेटा में बेहतर विश्लेषण शामिल हैं।
सबसे अधिक प्रेरक चालकों में से एक शैक्षिक उन्नति है, जिसने महिला श्रम बल भागीदारी दर में एक यू-आकार की प्रवृत्ति बनाई है। जैसे-जैसे महिलाएं शिक्षा प्राप्त करती हैं, कार्यबल में उनकी भागीदारी इस यू-आकार के वक्र को दर्शाती है। कम शिक्षा प्राप्त महिलाएं अक्सर आवश्यकता के कारण कार्यबल में प्रवेश करती हैं, अनौपचारिक या कम वेतन वाले क्षेत्रों में भूमिकाएं निभाती हैं।
इसके विपरीत, उच्च शिक्षित महिलाएं पेशेवर करियर सुरक्षित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक प्राप्ति के निम्न और उच्च दोनों स्तरों पर उच्च एलएफपीआर होता है। यह वक्र मध्य-स्तरीय शिक्षा में कार्यबल भागीदारी में गिरावट को दर्शाता है, लेकिन महिलाओं द्वारा उच्च योग्यता प्राप्त करने पर इसमें वृद्धि होती है। यह पैटर्न महिलाओं को सार्थक करियर में प्रवेश करने के लिए सशक्त बनाने में उच्च शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। इससे अक्सर बेहतर वित्तीय स्थिरता और करियर संतुष्टि मिलती है।
इसलिए, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा में निवेश करना, महिला कार्यबल की पूरी क्षमता को पूर्ण रूप से उजागर करने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण का परिचायक है। शैक्षिक उपलब्धि को बढ़ावा देकर, समाज यह सुनिश्चित कर सकता है कि अधिक से अधिक महिलाएं न केवल कार्यबल में प्रवेश करें, बल्कि ऐसी भूमिकाओं में भी सफल हों जो उनके कौशल और क्षमताओं का पूरा उपयोग करती हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव भी महिला भागीदारी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ है, वैसे-वैसे सेवाओं, प्रौद्योगिकी और विनिर्माण जैसे विकास क्षेत्रों ने पारंपरिक कृषि से अलग अवसर पैदा किए हैं। ये क्षेत्र महिलाओं के लिए विशेष रूप से आकर्षक हैं और विविध रोजगार संबंधी भूमिकाएं प्रदान करते हैं, जो पहले सीमित हुआ करती थी। इससे महिला रोजगार के लिए परिदृश्य और भी व्यापक हो गया है।
कार्यबल में महिलाओं का शामिल होना आर्थिक विकास का एक शक्तिशाली कारक साबित हो रहा है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से उत्पादकता, नवाचार और वित्तीय स्थिरता में बढ़ोतरी पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अर्थव्यवस्था में अधिक महिलाओं के योगदान के साथ, भारत वैश्विक मंच पर खुद को एक मजबूत और अधिक लचीली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित कर रहा है।
महिलाओं का आर्थिक योगदान न केवल भारत के श्रम बल में वृद्धि करता है, बल्कि विभिन्न उद्योगों में विविधता प्रदान करने में भी मदद करता है। इससे नए विचारों और दृष्टिकोणों को बढ़ावा मिलता है। यह बदलाव केवल आंकड़ों से कहीं अधिक है। यह एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत देता है, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने और बदलते आर्थिक रुझानों के अनुकूल होने के लिए बेहतर ढंग से लैस है।
महिलाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलने से राष्ट्र लैंगिक समानता के क्षेत्र में एक स्थिर प्रगति देख रहा है। महिलाओं के आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने से इसका जबर्दस्त प्रभाव सामने आता है। इसकी बदौलत वे परिवारों और समुदायों को ऊपर उठाती है, जिससे सार्थक सामाजिक परिवर्तन होता है। जब महिलाएं अपने घरों में आर्थिक रूप से योगदान देती हैं, तो परिवार शिक्षा में अधिक निवेश करने, बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने और नए अवसरों की खोज करने में सक्षम होते हैं। यह सशक्तिकरण परिवर्तनकारी है।
आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं द्वारा अपने बच्चों के भविष्य बेहतर बनाने संबंधी निर्णय लेने की अधिक संभावना होती है। जब महिलाओं के पास आर्थिक संसाधन होते हैं तो समुदाय लाभान्वित होते हैं। अधिक न्यायसंगत कार्यबल की ओर बदलाव सामाजिक ताने-बाने को समृद्ध कर एक समावेशी विकास की नींव रखता है ।
आने वाले वर्षों में भारत की जनसंख्या वृद्धि धीमी होने की उम्मीद है, इसलिए कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी देश की भविष्य की श्रम संबंधी मांगों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण होगी। भारत की आर्थिक गति को बनाए रखने के लिए अधिक महिलाओं को रोजगार क्षेत्र में प्रवेश के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक है। जैसे-जैसे कुशल श्रम की मांग बढ़ती है और कामकाजी आबादी की संख्या में गिरावट आती है, तब उत्पादकता बनाए रखने और भविष्य की आर्थिक चुनौतियों से निपटने में लैंगिक रूप से संतुलित कार्यबल महत्वपूर्ण होगा।
श्रम बाजार में अधिक महिलाओं को शामिल कर भारत प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और विविध उद्योगों को सहारा देने के लिए कुशल पेशेवरों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है। यह दृष्टिकोण न केवल भारत को जनसांख्यिकीय बदलावों के लिए तैयार करता है, बल्कि देश की आर्थिक नींव को भी मजबूत करता है। इससे यह प्रतिस्पर्धी वैश्विक परिदृश्य में अपना स्थान बनाने में सक्षम होती है।
भारत में हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी से देश भी विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। यह भारत के लोगों की ऊर्जा, महत्वाकांक्षा और प्रतिभा से प्रेरित है। यह सिर्फ़ एक आर्थिक बदलाव नहीं है बल्कि यह सभी के लिए सशक्तिकरण और अवसर के एक नए युग की शुरुआत है।
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