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कृषि का कचरा भी अब किसानों को देगा बड़ा लाभ...


एनआईआईएसटी के छात्रों और वैज्ञानिकों ने दैनिक प्रयोग में आने वाली प्लास्टिक का एक विकल्प तैयार कर कृषि अपशिष्ट से उत्पन्न जैव उत्पादन बायो-प्लास्टिक के सामान बनाना शुरू किया है। 

तिरुवनंतपुरम के पप्पनमोडे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी में कृषि अपशिष्टों से निकलने वाले बायोडिग्रेडेबल वेस्ट से प्लेट, चम्मच, कप और थैले तैयार किए जा रहे हैं। दरअसल, कच्चे माल में कई तरह के कृषि अपशिष्ट होते हैं, जैसे, चावल और गेहूं की भूसी, पत्ते और अनन्नास के पत्ते आदि। इन वैज्ञानिकों ने अनन्नास के पत्ते और गन्ने इत्यादि के कचरे से रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली शानदार वस्तुएं तैयार की हैं, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

आपने देखा होगा कि प्लास्टिक के उत्पादों के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कटलरी बड़ी मात्रा में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। उसकी जगह अब पर्यावरण के अनुकूल खेती के कचरे से बने उत्पादों ने ले ली है। ये उत्पाद प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में रफ्तार भर रहे हैं।

ध्यान रहे, चीड़, अनन्नास और सेब की पत्तियां यहां के किसानों के लिए सिरदर्द बन गई थीं, क्योंकि यहां कई स्थानों पर फसल का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक फसल के रूप में उत्पादन किया जा रहा है। जब कोविड 19 महामारी के दौरान लॉकडाउन हुआ तो अनन्नास प्रसंस्करण फैक्ट्री परिसर से अनन्नास की पत्तियों को हटाने की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। तब इसका समाधान खोजने के लिए कृषि अपशिष्ट से जैव उत्पादन का विकल्प तलाशा गया।

कृषि कचरे से बने ये उत्पाद टिकाऊ और प्रकृति के अनुकूल होने के साथ-साथ प्लास्टिक उत्पादों के मुकाबले बेहद सस्ते भी हैं। इन उत्पादों की विशेषता यह भी है कि ये 30 दिन के अंदर मिट्टी के अंदर घुल जाते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ये उत्पाद न सिर्फ प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर उल्लेखनीय है, बल्कि कृषि अपशिष्टों के जलने के बाद के वायु प्रदूषण को कम करने में भी सहायक होंगे।



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