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अवैध अप्रवासियों के लिए ‘हमदर्दी’ के पीछे छुपा है ‘स्वार्थ’

ईमानदार भारतीय, जो अपनी क्षमता के मुताबिक़ जीते हैं और अपना आत्मसम्मान को कायम रखते हैं, वे उन राज नेताओं से मायूस होते जा रहे हैं, जो वर्तमान सरकार को नीचा दिखाने के लिए अवैध अप्रवास की वकालत करते दिख रहे हैं। यह मसला सिर्फ़ सीमा सुरक्षा या आर्थिक असर का नहीं है, बल्कि यह असल में हमारी सामूहिक गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है।

ध्यान रहे, एक मुहिम के चलते, अमेरिका ने एक सैन्य विमान के जरिये 104 अवैध भारतीय अप्रवासियों को वापस भेजा है। अभी कई और लोगों के लौटने की आशंका है। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका में अवैध तौर पर रह रहे सात लाख से ज़्यादा भारतीयों को जल्द ही वापस भेजा जा सकता है। इनमें पंजाबी, हरियाणवी और गुजराती सबसे ज़्यादा प्रभावित समूह हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि इन अपेक्षाकृत खुशहाल राज्यों में अवैध अप्रवासियों की तादाद सबसे ज़्यादा है।

सार्वजनिक टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि कई लोग प्रवास करने के लिए बड़ी रकम खर्च करते हैं, जो एक परेशान करने वाली भावना को दर्शाता है। कुछ लोग अपने वतन, तहज़ीब और जीवनशैली के प्रति सम्मान की कमी महसूस करते हैं और वे अक्सर पश्चिम को ही एकमात्र ऐसी जगह मानते हैं, जहां उनके सपने पूरे हो सकते हैं।

यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि कई युवा जो भारत में बेहतरीन करियर बना सकते हैं, लेकिन उन्हें कनाडा में ट्रक ड्राइवर बनने का ख्वाब ज्यादा उत्साहित करता है। अहमदाबाद में भी कई ऐसे युवक बड़ी आसानी से मिल जाएंगे जो विदेश जाने की ही एक ख्वाहिश रखते हैं। यह सीमाओं से परे आकांक्षाओं की एक लगातार जारी प्रवृत्ति को दर्शाता है। 

कानूनी तरीके से अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने की कोशिश करने वालों और उन लोगों के बीच एक बड़ा फ़र्क़ है जो अवैध शॉर्टकट अपनाते हैं। कई कानून का पालन करने वाले नागरिक विदेशों में जाकर छोटे व्यवसाय शुरू करते हैं, भविष्य बनाने के लिए बेहद मेहनत करते हैं और वहां के समाज में सार्थक योगदान देते हैं। वहां ये लोग लचीलापन और उद्यमशीलता की मिसाल बन चुके हैं। इसके उलट, अवैध अप्रवासी अक्सर कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, जोखिमभरे और गैरकानूनी रास्ते चुनते हैं जो न सिर्फ़ कानून के शासन को कमज़ोर करते हैं बल्कि इसके चलते उन्हें बेइज़्ज़ती और शोषण का भी सामना करना पड़ता है।

अवैध अप्रवास उन राजनेताओं के पाखंड को भी उजागर करता है जो राजनीतिक फ़ायदे के लिए अवैध अप्रवासियों की दुर्दशा का इस्तेमाल करते हुए इंसानी गरिमा का समर्थन करने का दावा करते हैं। कई नेता नरमी की वकालत करते हैं, लेकिन उनकी मंशा अक्सर स्वार्थी होती है। उनकी तथाकथित हमदर्दी अक्सर आव्रजन चुनौतियों को हल करने के असली प्रयास के बजाय वोट हासिल करने का एक ज़रिया होती है। ऐसा करके, वे नियमों का पालन करने वाले अप्रवासियों और कानून का पालन करने वाले नागरिकों के संघर्षों को कमज़ोर कर देते हैं। असली सवाल यह है कि कानून का सम्मान करने वाले और सही तरीके से आगे बढ़ने वाले व्यक्ति को कानून तोड़ने वाले के बराबर क्यों माना जाना चाहिए?

सच्ची हमदर्दी का मतलब अराजकता को बढ़ावा देना नहीं है। इसका मतलब ऐसे मूल्यों को कायम रखना है, जो लोगों को वैध मौक़ों की तलाश करने के लिए सशक्त बनाते हैं। अवैध अप्रवास को बढ़ावा देना कई गलत संदेश देता है। इससे नियमों को न मानने वाले और शॉर्टकट अपनाने वालों को बढ़ावा मिलता है। यह हर उस मेहनती इंसान का अपमान है, जिसने मुश्किलों के बावजूद ईमानदारी का रास्ता चुना है। 

आव्रजन नीतियों और उनके लिए वकालत करने वालों के पीछे की मंशा का गंभीर पुनर्मूल्यांकन करने का वक़्त आ गया है। भारत को गरिमा, ज़िम्मेदारी और बेहतर ज़िंदगी की तलाश पर व्यापक संवाद शुरू करना चाहिए। 

अवैध अप्रवासियों के लिए नियमों को ढीला करने के बजाय, सरकारों को कानूनी आव्रजन रास्तों को मज़बूत करने, कौशल-आधारित प्रवास को बढ़ावा देने और वैध नागरिकों के लिए मौक़ों में सुधार करने पर ध्यान देना चाहिए। संसाधनों का आवंटन उन लोगों के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए, जो व्यवस्था का पालन करते हैं, न कि उन लोगों के लिए जो इससे बचते हैं। नीतियों को इस विचार को मज़बूत करना चाहिए कि हर इंसान के पास कानूनी तौर पर और इज़्ज़त के साथ अपने भाग्य को आकार देने की ताक़त है।

एक राष्ट्र की ताक़त उसके मूल्यों में निहित होती है, और भारत ने लंबे समय से आत्मनिर्भरता, गरिमा और हिम्मत के गुणों पर गर्व किया है। संदेश साफ़ होना चाहिए कि बेहतर ज़िंदगी का रास्ता मेहनत, कानून के प्रति सम्मान और आत्म-सम्मान के प्रति अटूट प्रतिबद्धता से होकर गुज़रता है। “नो शॉर्ट कट्स प्लीज”।