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विधि साक्षरता है ‘नए भारत’ की सबसे बड़ी जरूरत


हमारे देश में छात्रों के लिए विधिक शिक्षा का प्रावधान स्नातक स्तर पर जाकर ही शुरू होता है। हालांकि, इससे पहले, विद्यार्थियों को नागरिक शास्त्र के रूप में, थोड़ी-बहुत मूलभूत जानकारी जरूर दी जाती है, लेकिन इसे पर्याप्त कतई नहीं कहा जा सकता। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वयस्क होने तक भी हमारे विद्यार्थियों के पास अपने ही देश के कानून के बारे में मूलभूत जानकारियां तक नहीं होती हैं।

जब ये बच्चे एक नागरिक के रूप में कोई कानूनी मदद लेने के लिए किसी पुलिस थाना या अदालत में पहुंचते हैं, तो इन्हें कानूनी प्रक्रिया, अपने संवैधानिक दायरे, कर्तव्यों और यहां तक कि अधिकारों के बारे में भी बहुत कम जानकारी होती है, और कभी-कभी तो कोई जानकारी ही नहीं होती है। इसका परिणाम उनके शोषण के रूप में सामने आता है। यही शोषण भ्रष्टाचार का पहला आधार भी बनता है।

देश में शिक्षा के मॉडल को अगले पायदान पर पहुंचाने का दावा करने वाली, मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी नई शिक्षा नीति में भी इसे लेकर बात, नागरिक शास्त्र से आगे नहीं बढ़ पाई है। तो... फिर, सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों, प्राथमिक शिक्षा स्तर से ही छात्रों को विस्तृत विधिक जानकारी दिया जाना जरूरी नहीं समझा जाता है। और, ये इंतजाम क्यों नहीं किए जाते हैं कि आठवीं कक्षा तक आते-आते हमारे विद्यार्थी, देश के कानून, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को भली-भांति समझने लगें...?   

ऐसे ही कई सवालों और देश में वैधानिक शिक्षा के मौजूदा स्वरूप पर बातचीत करने के लिए आज हमारे साथ हैं अधिवक्ता व विधिक मामलों के जानकार अमिताभ नीहार...

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