क्या आगरा के डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय को बचाने के लिए कुछ किया जा सकता है? यह महत्वपूर्ण प्रश्न तब और भी गंभीर हो जाता है जब उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा गिरावट के निम्न बिंदु पर पहुंचती दिखती हो, जबकि राज्य के शिक्षा मंत्री ताज नगरी से आते हों।
आगरा विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना 1927 में हुई थी और जो कभी अकादमिक उत्कृष्टता का प्रतीक था, पिछले तीन दशकों में अपनी चमक खोता हुआ देख रहा है। भारत के सबसे पुराने संस्थानों में से एक के रूप में, इसने चौधरी चरण सिंह, शंकर दयाल शर्मा और मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गजों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों के अनगिनत पेशेवरों को देश सेवा का मौका दिया है। हालांकि, विश्वविद्यालय अब अक्षमता, कुप्रबंधन और प्रणालीगत गिरावट से ग्रस्त, अस्थिर स्थिति में खड़ा है।
Read in English: Save Agra University by splitting it into medical, agricultural universities
उत्तर प्रदेश में नोएडा से लेकर लखनऊ तक 500 के करीब संबद्ध कॉलेज और सात लाख से अधिक छात्रों का पंजीकरण इसे बोझिल बनाता है। देरी से परिणाम आना, भ्रष्टाचार, अनियमित परीक्षाएं और परिणामों में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी से इसकी विश्वसनीयता कम हुई है। कई विभागों में संविदा और अतिथि शिक्षकों के भरोसे तंत्र चल रहा है। शिक्षक और कर्मचारियों में उत्साह व प्रेरणा की कमी है। अनुचित नियुक्तियां, पदोन्नति नीतियों का अभाव और जवाबदेही का अभाव, इन व्यवस्थागत खामियों को लंबे समय से प्रभावित कर रहा है।
इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए साहसिक, परिवर्तनकारी कदमों की आवश्यकता है, जिसमें विश्वविद्यालय को विशेष संस्थानों में विभाजित करना प्राथमिकता है।
साल 1854 में स्थापित थॉम्पसन मेडिकल स्कूल और अस्पताल, जिसे बाद में उन्नत करके सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज के रूप में नामित किया गया था, एक स्वतंत्र चिकित्सा विश्वविद्यालय के रूप में अगले उन्नयन का हकदार है। इसकी सुविधाओं को मिनी-एम्स में अपग्रेड करने और आगरा के ऐतिहासिक मानसिक अस्पताल को एकीकृत करने की योजना चल रही है।
राजा बलवंत सिंह कॉलेज को कृषि विश्वविद्यालय में बदलना भी उतना ही जरूरी और स्वाभाविक है। साल 1885 में स्थापित, यह संस्थान भूमि संसाधनों के मामले में देश के सबसे बड़े संस्थानों में से एक है। इसका बिचपुरी परिसर कृषि विस्तार, ग्रामीण विकास और इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता रखता है।
आलू, दालों, सरसों और गेहूं का एक प्रमुख उत्पादक होने के कारण आगरा का कृषि महत्व स्थानीय विशेषज्ञता की मांग करता है। कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना से अनुसंधान और नवाचार में वृद्धि होगी। इससे कृषि-जलवायु चुनौतियों का समाधान, टिकाऊ प्रथाओं का विकास और फसल विविधीकरण का समर्थन होगा। किसान सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा। किसानों को आधुनिक ज्ञान से युक्त कर उत्पादकता और आय में सुधार होगा। टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिलेगा। कृषि वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की अगली पीढ़ी को जैविक और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से प्रशिक्षण मिलेगा। कृषि विकास के लिए शिक्षा, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग की सुविधा बढ़ेगी।
आरबीएस कॉलेज को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने से इसका प्रभाव बढ़ेगा। इससे शोध और व्यावहारिक अनुप्रयोगों का बेहतर एकीकरण हो सकेगा। आगरा विश्वविद्यालय को चिकित्सा और कृषि विश्वविद्यालय में विभाजित करना प्रशासनिक सुधार से कहीं अधिक है। अब यह एक रणनीतिक आवश्यकता है।
एक लंबी अवधि तक आगरा मेडिकल कॉलेज और बिचपुरी कृषि संस्थान विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं। अनेक बार आगरा कॉलेज और सेंट जॉन्स कॉलेज को भी आगरा विश्वविद्यालय से मुक्त करके स्वतंत्र संस्थानों के रूप में मान्यता देने पर भी मंत्रणा हुई, लेकिन निजी स्वार्थों ने बात आगे नहीं बढ़ने दी। समस्या यह भी है कि व्यवस्था को चलाने के लिए जिम्मेदार लोग इन विषयों पर चर्चा करने से कतराते हैं, क्योंकि यथा स्थितिवाद की पूजा में ही मेवा है।
परन्तु, बदलाव का अब समय आ गया है। अपनी जटिल संरचना का विकेंद्रीकरण करके, राज्य सरकार आगरा में उच्च शिक्षा को पुनर्जीवित कर सकती है, नवाचार को बढ़ावा दे सकती है, और उत्तर प्रदेश में कृषि और स्वास्थ्य सेवा के लिए एक उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित कर सकती है।
शिक्षा, कृषि और चिकित्सा में अपनी समृद्ध विरासत के साथ, आगरा ऐसे संस्थानों का हकदार है जो इसकी क्षमता को दर्शाते हों। शिक्षक और विद्यार्थियों के लिए निर्णायक रूप से कार्य करने, समकालीन चुनौतियों का समाधान करने और उत्कृष्टता के केंद्र बनाने के लिए इन ऐतिहासिक संस्थानों का लाभ उठाने का समय आ गया है।
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