पिछले माह केंद्रीय स्वास्थ मंत्री जेपी नड्डा ने राज्य सभा में आशा वालंटियर्स के महत्वपूर्ण योगदान को सराहते हुए वायदा किया था कि उनका मंत्रालय वेतन सुधार की मांगों पर विचार करेगा और ज्यादा सहूलियतें मुहैया कराएगा।
सालों से ये वायदे हो रहे हैं, मगर कार्रवाई नहीं हो रही है। लगभग दो दशकों से, भारत की 'आशा' कार्यकर्ताएं ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ की हड्डी बनी हुई हैं। एक ऐसी फौज जो चुपचाप मगर दृढ़ता से दूरदराज के गांवों और औपचारिक चिकित्सा सेवाओं के बीच एक सेतु का काम कर रही है।
साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत शुरू हुई, दस लाख महिलाओं की यह सेना, मां और बच्चे की सेहत में ज़बर्दस्त सुधार ला रही है। परिवार नियोजन, टीकाकरण व अन्य सरकारी स्वास्थ्य योजनाएं आशा वालंटियर्स के जरिए ही लोगों तक पहुंचती हैं।
लेकिन अफसोस, कि आशा ताइयां कम तनख्वाह, बिना नौकरी की सुरक्षा और कम सम्मान के साथ मुश्किल हालातों में काम कर रही हैं। कोविड-19 महामारी ने इनकी ज़रूरी भूमिका को उजागर किया था, जब उन्होंने घर-घर जाकर स्क्रीनिंग और टीकाकरण अभियान चलाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली, पर कभी-कभार मिलने वाली तारीफ से आगे, इन फ्रंटलाइन वॉरियर्स को तंत्र की अनदेखी का सामना करना पड़ता है।
अगर भारत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज हासिल करने के बारे में गंभीर है, तो उसे 'आशा' कार्यक्रम में फौरन सुधार करना चाहिए, अपने सबसे ज़रूरी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सही तनख्वाह, बेहतर काम करने के हालात और सम्मान तय करना चाहिए।
एक रिटायर्ड आशा वॉलंटियर ने बताया कि आधिकारिक रूप से ‘वॉलंटियर’ के तौर पर मानी जाने वाली 'आशा' वर्कर को औपचारिक नौकरी के फायदे नहीं मिलते हैं। इन्हें कोई तय तनख्वाह, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा या मैटरनिटी लीव नहीं मिलती है। उनके परफॉरमेंस पर आधारित इंसेंटिव से उनकी कमाई औसतन ₹5,000 से ₹10,000 प्रति माह होती है, जो गुज़ारे के लिए बहुत कम है। भुगतान में अक्सर देरी होती है, जिससे कई लोगों को अतिरिक्त काम करना पड़ता है।
सोचिए, 'आशा' कार्यकर्ता लगभग 30 काम एक साथ करती हैं। टीकाकरण अभियान से लेकर मातृ स्वास्थ्य परामर्श तक, अक्सर हफ्ते में 20+ घंटे काम करती हैं। कई लोग बिना ट्रांसपोर्ट अलाउंस, पीपीई किट या बेसिक मेडिकल सप्लाई के हर दिन कई मील पैदल चलती हैं। उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है, जिससे वे आर्थिक रूप से कमज़ोर हो जाती हैं। कई लोगों ने सहायक नर्स दाइयों और मेडिकल अधिकारियों से खराब बर्ताव की शिकायत की है। महिला 'आशा' वर्कर को घरेलू झगड़ों का सामना करना पड़ता है। कुछ को तो उनके काम के लिए तलाक की धमकी भी दी जाती है। ऊंची जाति के परिवार अक्सर उन्हें प्रवेश देने से मना कर देते हैं। इससे स्वास्थ्य सेवा में रुकावट आती है।
कई मुश्किलों के बावजूद, 'आशा' कार्यकर्ताओं ने मां और बच्चे की मृत्यु दर में कमी, टीकाकरण दरों में बढ़ोतरी, टीबी और एचआईवी के बारे में जागरूकता में सुधार, मानसिक स्वास्थ्य सहायता देने और स्वास्थ्य रिकॉर्डों का डिजिटलीकरण जैसे क्षेत्रों में ज़रूरी भूमिका निभाई है।
आशा कार्यकर्ताओं को शक्तिशाली बनाने के लिए, विशेषज्ञों ने ढेरों सुझाव सरकार को दे रखे हैं। इंसेंटिव-बेस्ड भुगतान को तय तनख्वाह तथा परफॉरमेंस बोनस के साथ बदलना, पेंशन, बीमा और मातृ लाभ देना, ट्रांसपोर्ट अलाउंस, स्मार्टफोन, पीपीई किट और स्वास्थ्य केंद्रों पर आराम करने की जगह देना, देरी और भ्रष्टाचार से बचने के लिए भुगतानों को आसान बनाना, मानसिक स्वास्थ्य, एनसीडी और इमरजेंसी रिस्पांस में रेगुलर स्किल डेवलपमेंट करना, 'आशा' को असिस्टेंट नर्स या पब्लिक हेल्थ वर्कर के रूप में प्रमाणित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों के साथ सेतु पाठ्यक्रम करना, ऊंची हेल्थ सर्विस भूमिका में प्रमोशन के स्पष्ट रास्ते बनाना, जाति और लिंग के आधार पर रुकावटों के लिए सख्त भेदभाव विरोधी नीतियां बनाना, घरेलू झगड़ों को कम करने के लिए फैमिली सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम चलाना, और मुख्य मेडिकल ड्यूटीज पर ध्यान देने के लिए गैर-स्वास्थ्य संबंधित कामों को कम करना ज़रूरी है। ₹49,269 करोड़ के बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर सेस फंड को आंशिक रूप से 'आशा' वेलफेयर को सपोर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही बेहतर तनख्वाह स्ट्रक्चर का ट्रायल शुरू कर दिया है। इन मॉडलों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।
'आशा' कार्यकर्ता ‘वॉलंटियर’ नहीं हैं। वे ज़रूरी हेल्थ सर्विस प्रोफेशनल हैं। अगर भारत वाकई अपनी ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र को महत्व देता है, तो यह दिखावटी सेवा से आगे बढ़ने और उन्हें वह सम्मान, तनख्वाह और सपोर्ट देने का वक्त है, जिसकी वे हकदार हैं। उनकी लगातार सेवा ने लाखों लोगों की जान बचाई है। अब, तंत्र को उन्हें थकान और अनदेखी से बचाना चाहिए। 'आशा' कार्यकर्ताओं को शक्तिशाली बनाएं, वरना ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा को टूटते हुए देखें।
Related Items
उच्च शिक्षा में सुधार के लिए सरकार कसे कमर
कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को ऐसे दें बढ़ावा...
दसवीं और आईटीआई पास युवाओं के लिए रेल मंत्रालय चलाएगा बड़ा भर्ती अभियान