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क्यों भारत छोड़कर विदेशों में बसना चाहते हैं हमारे युवा?

पश्चिमी दुनिया के लिए भारतीय पेशेवरों, उद्यमियों, छात्रों और यहां तक कि संघर्षरत लोगों का पलायन एक खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। यह सिर्फ हरियालीभरे मैदानों या सोने की चमक की तलाश नहीं है।

यह एक जटिल मसला है, जो ‘पुश’ और ‘पुल’ कारकों के मेल से जन्म लेता है और भारत के शासन, आर्थिक माहौल और सामाजिक ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह प्रतिभा और पूंजी का बहिर्गमन न सिर्फ मानव संसाधनों का नुकसान है, बल्कि भारत की विकास क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है।

अंग्रेजी में पढ़ें : Why so many people want to quit India? 

क्या वतन की मिट्टी की खुशबू, धर्म और संस्कृति के बंधन इतने कमजोर हो गए हैं कि भारत के युवाओं को रोक नहीं पाते? जबकि कुछ इसे ‘भागने की मानसिकता’ कहते हैं, लेकिन जो लोग देश छोड़ते हैं, उन्हें देशद्रोही कहना उनके फैसलों के पीछे छिपे व्यवस्थागत मुद्दों को नज़रअंदाज़ करना है। बेहतर ज़िंदगी, ऊंची आमदनी, विश्वस्तरीय तालीम और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल का सपना, घर की मुश्किलों के मुकाबले कहीं ज़्यादा आकर्षक लगता है। 

सलाहकार मुक्ता गुप्ता कहती हैं कि यह सिर्फ शख्सियत की महत्वाकांक्षा नहीं है बल्कि यह व्यवस्था के प्रति बढ़ता हुआ मोहभंग है। उच्च-निवल-मूल्य वाले लोग भारत से बाहर अधिक स्थिर और पूर्वानुमानित निवेश माहौल की तलाश में हैं। यहां तक कि आरोपी व अपराधी भी लंदन जैसे शहरों में बसना चाहते हैं। 

हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, इस साल के अंत तक 4,300 करोड़पति भारत छोड़ देंगे। पिछले साल, 5,100 करोड़पतियों ने भारत को अलविदा कह दिया। रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर, दुबई और कई यूरोपीय देश भारतीय पूंजी के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। दुबई का रियल एस्टेट सेक्टर अमीर भारतीयों के लिए एक लोकप्रिय निवेश बन गया है, जहां व्यवसायी, फिल्म कलाकार, खिलाड़ी व अन्य धनी लोग शानदार विला, लग्जरी अपार्टमेंट और व्यावसायिक मौकों की तलाश में लगे हैं।  क्रिकेट मैचों ने आकर्षण और बढ़ा दिया है।

उद्योगपति राजीव गुप्ता कहते हं कि पूंजी का यह बहिर्गमन भारत को बुनियादी ढांचे के विकास और रोजगार सृजन के लिए ज़रूरी निवेश से वंचित कर रहा है। संभावित प्रवासियों से बातचीत में कुछ आम शिकायतें सामने आती हैं। जटिल और अप्रत्याशित कर नीतियां व्यवसायों के लिए अनिश्चितता पैदा करती हैं। अत्यधिक विनियमन और नौकरशाही की बाधाएं नवाचार और उद्यमिता को रोकती हैं। व्यवसायों को अक्सर अधिकारियों से जबरन वसूली और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिससे अविश्वास का माहौल बनता है। 

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि बढ़ती अपराध दर, सामाजिक अशांति और राजनीतिक प्रवचनों का निम्न स्तर लोगों को असुरक्षित महसूस कराता है, जिससे वे सुरक्षित ठिकानों की तलाश में विदेश जाने को मजबूर होते हैं। 

धनी लोगों के अलावा, भारत के सबसे प्रतिभाशाली लोग, छात्र और कुशल पेशेवर, भी बड़ी संख्या में विदेश जा रहे हैं। भारतीय शिक्षा प्रणाली ने प्रगति तो की है, लेकिन वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में अभी भी पीछे है। प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों का आकर्षण, भारत में सीमित शोध अवसरों और कठोर पाठ्यक्रम के साथ मिलकर, कई छात्रों को विदेश जाने के लिए प्रेरित करता है। भारत में घटिया शिक्षा के लिए बहुत ज्यादा फीस का खर्च आता है, प्लेसमेंट की भी कोई गारंटी नहीं है।

विदेश जाने के बाद, इनमें से कई प्रतिभाशाली लोग वापस नहीं लौटना चाहते। विदेशी नौकरी बाजार अक्सर बेहतर मुआवजा और तेजी से करियर प्रगति प्रदान करते हैं, खासकर प्रौद्योगिकी और वित्त जैसे क्षेत्रों में। बेंगलुरु के एक तकनीकी विशेषज्ञ, जो अमेरिका में बसे हैं, कहते हैं कि कई पेशेवरों को विदेशी कार्य माहौल अधिक योग्यता आधारित लगता है, जो कनेक्शन के बजाय प्रदर्शन के आधार पर विकास के अवसर प्रदान करता है। 

यह प्रतिभा पलायन भारत को उसके भावी नवप्रवर्तकों और उद्यमियों से वंचित कर रहा है। इससे देश के दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक विकास में बाधा आती है। यह प्रमुख क्षेत्रों में कौशल की कमी भी पैदा करता है, जिससे भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है। 

दुखद बात यह है कि कुछ लोग हताश होकर अवैध तरीकों का सहारा लेते हैं और वीजा घोटालों, मानव तस्करी और अन्य खतरनाक योजनाओं का शिकार हो जाते हैं। ये घटनाएं न सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदियां पैदा करती हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को भी धूमिल करती हैं। 

इस पलायन के मूल कारणों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। व्यापार सलाहकार दिनकर का कहना है कि सरकार को विनियमों को सरल बनाना चाहिए, नौकरशाही को कम करना चाहिए, और व्यापार-अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना चाहिए। पारदर्शिता और सरल प्रक्रियाएं ही भारत को प्रतिभा और पूंजी के बहिर्गमन से बचा सकती हैं। 

भारत से पलायन की यह प्रवृत्ति देश को न सिर्फ आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे को भी प्रभावित कर रही है। इस समस्या का समाधान केवल व्यवस्थागत सुधारों और एक स्थिर, पारदर्शी माहौल के निर्माण से ही संभव है। वतन की मोहब्बत और सांस्कृतिक बंधनों को मजबूत करने के साथ-साथ, भारत को अपने युवाओं और प्रतिभाओं के लिए एक बेहतर भविष्य का वादा करना होगा।


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