Latest News: संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा (II), 2025 की लिखित परीक्षा के परिणाम घोषित * राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा (I), 2025 के अंतिम परिणामों की हुई घोषणा * सीएपीएफ (सहायक कमांडेंट) परीक्षा 2025 के लिखित परिणाम घोषित

आदिवासी बच्चों के शैक्षणिक विकास की नींव रख रहे हैं एकलव्य स्कूल


भारत के दूरदराज आदिवासी गावों में स्थित एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों ने एक बड़ा कीर्तिमान स्थापित किया है। वर्ष 2024 -25 में इन स्कूलों के करीब 597 छात्रों ने देश की अत्यंत प्रतियोगी मानी जाने वाली जेईई मेन और जेईई एडवांस तथा नीट की परीक्षा में रिकार्ड सफलता हासिल की है।

यह एक बड़ा उछाल है, क्योंकि इन स्कूलों से उपरोक्त परीक्षाओं में सफल होने वाले छात्रों की संख्या वर्ष 2022-23 में मात्र दो थी। इन स्कूलों की यह उपलब्धि इस बात को दर्शाती है कि कैसे लक्ष्य आधारित शिक्षा के प्रसार के जरिये भारत की अत्यंत उपेक्षित आदिवासी जनजातियों के जीवन में बदलाव और उन्हें बेहतर अवसर प्रदान किया जा सकता है।

Read in English: Eklavya schools lay foundation for tribal kids’ educational development

गौरतलब है कि बारहवीं क्लास तक शिक्षा प्रदान करने वाले देश के कुल 230 एकलव्य आदर्श विद्यालयों में 101 विद्यालयों के छात्रों ने उपरोक्त परीक्षाओं में यह सफलता हासिल की है। इसमें एक उदाहरण हिमाचल प्रदेश की बसपा घाटी के सांगला गांव के जतिन नेगी का है। इस आदिवासी छात्र ने हिमालय इलाके के गांव की कपकपाती ठंड और बिजली आपूर्ति के अभाव के बावजूद जेईईएडवांस उत्तीर्ण कर आल इंडिया रैंकिंग में 421वां स्थान हासिल किया। अभी जतिन आईआईटी जोधपुर के छात्र हैं।

सुदूर इलाके में रहने वाले जतिन नेगी की पढ़ाई जाड़े के महीनों में होने वाली भारी बर्फ़बारी से लगातार बाधित होती रहती थी। जतिन बताते हैं कि इस दौरान उनके गांव में दो-दो महीने के लिए बिजली गायब हो जाती थी, तब रात में सोलर लैंप के प्रकाश में पढ़ाई करना पड़ती थी। नेगी एकलव्य विद्यालय के छात्रावास में रहकर अपने शिक्षक से मार्गदर्शन पाकर अपने स्कूल रुटीन को व्यवस्थित किया।

नेगी ने एकलव्य विद्यालय में पढ़ाई के प्रति अपनी रुचि विकसित की। स्कूल के शिक्षकों ने नेगी और अन्य छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया। नेगी बताते हैं कि बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के परम्परागत तरीके अपनाने के बजाय उनके शिक्षकों ने प्रतियोगी परीक्षा की मनोवृति विकसित की।

इसी तरह, दूसरा उदाहरण गुजरात के खपाटिया गांव की छात्रा पदवी ऊर्जस्वी बेन अमृतभाई का है। इस छात्रा ने प्रदेश के बरटांड़ स्थित एकलव्य विद्यालय में पढ़कर नीट की परीक्षा उत्तीर्ण की। यानी, उनका डॉक्टर बनने का सपना जल्द ही साकार हो जाएगा।

पदवी भी कड़ी मेहनत में विश्वास करती हैं। छोटे से गांव की यह बालिका अपनी दो बहनों में से एक हैं। वह कहती हैं कि गांव वाले उनके मां-बाप को कहते थे कि तुम्हें कोई बेटा नहीं है, आखिर तुम्हारी बेटियां क्या ही कर पाएंगी?

पदवी बताती है कि गैर-गुजराती माध्यम से पढ़ाई करने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन, सौभाग्य से एकलव्य विद्यालय के शिक्षकों से उन्हें सहायता मिली। शिक्षकों ने उनका लगातार उत्साहवर्धन किया। जब पदवी ने नीट की परीक्षा में 11926वीं वरीयता हासिल की तो उनमें इस बात का भरोसा जगा कि शिक्षा और कड़ी मेहनत से किसी में कुछ भी बदलाव लाया जा सकता है। उनका मानना है कि शिक्षा लोगों को सामाजिक बाधा और भेदभाव समाप्त करने में सबसे बड़ी मददगार है। अभी पदवी जूनागढ़ के जीएमईआरएस मेडिकल कालेज से एमबीबीएस कर रही हैं और आगे चलकर लोगों को सस्ता इलाज करने का इरादा रखती हैं।

ये दो कहानियां एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों से मिले जीवन बदलने वाले अवसरों की ऐसी गाथा हैं, जिन्होंने सैकड़ों आदिवासी बच्चों की तक़दीर बदल दी है।

आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा स्थापित एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय आदिवासी वर्ग के विद्यार्थियों को बेहद गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करते हैं। ये विद्यालय आदिवासी बच्चों को उच्च और पेशेवर शिक्षा में बड़े अवसर देने के साथ साथ अनेकानेक क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करते हैं।

समूचे देश में 485 एकलव्य आवासीय विद्यालय कार्यरत हैं, जिनमें वर्ष 2024-25 के दौरान करीब 1,38,336 छात्र नामांकित थे। वैसे, देश में एकलव्य विद्यालय की कुल स्वीकृत संख्या 722 है, जिनके लिए कुल 68,418 लाख रुपये का कोष जारी किया गया है। आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को प्रदत्त अनुदान राशि का इस्तेमाल स्कूल भवन के निर्माण और इसके नियमित खर्च के लिए दिया जाता है। आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए भारतीय संविधान में उल्लिखित समेकित कोष से हर वर्ष अनुदान राशि प्रदान की जाती है।

योजना की शुरुआत वर्ष 1997-98 में की गई थी। वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में भारत सरकार ने एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय यानी ईएमआरएस को लेकर घोषणा करते हुए कहा था कि पचास प्रतिशत से ज्यादा तथा बीस हज़ार आदिवासी आबादी वाले वाले हर प्रखंड में यह स्कूल स्थापित किया जाएगा।

एकलव्य विद्यालयों का विस्तार स्थानीय आदिवासी समुदाय के बच्चों को सीधे तौर पर उच्च स्तर की मुफ्त शैक्षणिक व्यवस्था प्रदान करने में काफी मददगार साबित हुआ है। इनमें बच्चे सीबीएसई पाठ्यक्रम की पढ़ाई बिल्कुल अपने परिवेश में प्राप्त करने का अनमोल अवसर प्राप्त करते हैं। इन स्कूलों में सभी सुविधाओं से सुसज्जित छात्रावास, क्लास रूम, प्रयोगशाला और खेल सुविधाएं दी गई हैं।

एकलव्य विद्यालय आदिवासी बच्चों के सम्पूर्ण विकास की सारी परिस्थितियां प्रदान करता है। इनमें शैक्षणिक, शारीरिक और गैर पाठ्यक्रम गतिविधियां शामिल हैं। बच्चे यहां मुफ्त शिक्षा के अलावा पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और करियर परामर्श प्राप्त करते हैं, जिससे कि वे उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के काबिल बन सकें।

एकलव्य विद्यालयों के जरिये प्रदत्त इन उपायों से कुल मिलाकर आदिवासी बच्चों का शैक्षणिक विकास तो होता ही है, साथ ही, उनका सामाजिक समावेशीकरण भी होता है। आदवासी समुदाय के आर्थिक और सामाजिक उत्थान का कार्य भी सुनिश्चित होता है।



Related Items

  1. शैक्षिक समानता को बढ़ावा दे रहे हैं केंद्रीय और नवोदय विद्यालय

  1. काबिलियत साबित करने की परीक्षा से क्यों घबरा रहे हैं शिक्षक!

  1. भारत में शिक्षा का संकट, सर्वे ने उजागर की चिंताजनक खामियां




Mediabharti