तमाम रिपोर्ट बार-बार चीख-चीख कर कह रही है कि आठवीं क्लास के बच्चे तीसरी की किताब भी नहीं पढ़ पाते। सरकारी स्कूलों में शिक्षक तो हैं, पर पढ़ाने की लगन नहीं। निजी स्कूलों में फीस है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का घोर अभाव। पाठ्यक्रम रटंत विद्या को बढ़ावा देते हैं, सोचने-समझने की क्षमता को कुचलते हैं...
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